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Motivational Story in Hindi – प्रेरणादायक कहानियाँ (सफलता का मन्त्र)

अपने जीवन को प्रेरणा और उत्साह से भरने के लिए अगर हमारी यह Post पढ़ लिए तो आपको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता है। यह ” Motivational Story in Hindiप्रेरणादायक कहानियाँ – आपको जीवन में होने वाली मुश्किलों से पार करा सकता है। हमने एक रोचक और प्रेरणादायक कहानियों का संग्रहण किया है, जिसमें आपको सफलता के मार्ग पर बढ़ने के लिए आवश्यक उपाय और मंत्र दिए गए हैं।

यह प्रेरणादायक कहानियां आपके विश्वास को मजबूत करेंगी और आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेंगी। तो आइए, अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ें और अपने जीवन में सफलता की ओर एक कदम आगे बढ़ाएं।

Motivational Story in Hindi – कर्म और भाग्य

“कर्म और भाग्य”

एक चाट वाला था जब भी चाट खाने जाओ ऐसा लगता था कि वह हमारा ही रास्ता देख रहा है हर विषय में बात करने में उसे बड़ा मजा आता था कई बार मैंने उससे कहा कि बंधू लेट हो जाती है, चाट तुरंत लगा दिया करो पर उसकी बात तो समाप्त ही नहीं होती थी

एक दिन अचानक कर्म और भाग्य पर बात शुरू हो गई तक़दीर और तदबीर की बात सुन मैंने सोचा कि चलो आज उसकी फिलासफी देख लेते हैं मैंने एक सवाल उछाल दिया

मेरा प्रश्न था की इंशान परिश्रम से उन्नति करता है कि किस्मत से? और उसके जवाब से मेरे दिमाग के सारे ग़लतफ़हमी ही दूर हो गए

उसने कहा, आपका किसी बैंक में लॉकर है या नहीं? उसकी चाभियाँ ही इस सवाल का जवाब है हर लॉकर की दो चाभियाँ होती है एक आपके पास होती है और एक मैनेजर के पास आपके पास जो चाभी है वह है परिश्रम और मैनेजर के पास वाली भाग्य जब तक दोनों नहीं लगती ताला नहीं खुल सकता आप कर्मयोगी पुरुष और मैनेजर भगवान

आपको अपनी चाभी भी लगाते रहना चाहिए पता नहीं, ऊपर वाले कब अपनी चाभी लगा दे कहीं ऐसा न हो कि भगवान अपनी भाग्यशाली चाभी लगा रहा हो और हम अपनी मेहनत वाली चाभी का उपयोग नहीं कर पा रहे हों जिसके वजह से हमारी किस्मत वाली ताला खुलते-खुलते रह जाये

के कलम से – संतोष कुमार (शिक्षक)

Motivational Story in Hindi – निर्णय लेने की शक्ति

निर्णय लेने की शक्ति

एक पहलवान जैसा, हट्टा-कट्टा, लम्बा-चौड़ा व्यक्ति सामान लेकर किसी स्टेशन पर उतरा उसने एक टैक्सी वाले से कहा कि मुझे साईं बाबा के मंदिर जाना है टैक्सी वाले ने कहा- 200 रूपये लगेंगे उस पहलवान आदमी ने बुद्धिमानी दिखाते हुए कहा – इतने पास के दो सौ रूपये, आप टैक्सी वाले तो लूट रहे हो. मैं अपना लैगेज स्वयं ही लेकर कर चला जाऊंगा

वह व्यक्ति काफी दूर तक सामान लेकर चलता रहा कुछ देर बाद पुनः उसे वही टैक्सी वाला दिखा, अब उस आदमी ने फिर टैक्सी वाले से पूछा – बंधु अब तो मैं आधा से अधिक मंजिल तय कर ली है तो बताओ अब आप कितना किराया लोगे? टैक्सी वाले का उत्तरथा चार सौ रूपये

उस व्यक्ति ने पुनः कहा – पहले 200 रूपये फिर 400 रूपये, अब ऐसा क्यों? टैक्सी वाले ने जवाब दिया – महोदय इतनी देर से आप साईं मंदिर के विपरीत दिशा में दौड़ लगा रहे हैं, जबकि साईं मंदिर तो दूसरी तरफ है उस पहलवान आदमी ने कुछ भी नहीं कहा और चुपचाप टैक्सी में बैठ गया

इसी प्रकार जिंदगी के कई अहम् पड़ाव पर हमलोग किसी चीज को बगैर गंभीरतापूर्वक सोचे समझे सीधे काम को अंजाम दे देते हैं, और फिर अपनी परिश्रम और समय को नष्ट कर उस काम को आधा अधुरा ही करके छोड़ देते हैं

ऐसा क्यों हुआ?

जब तक हम अपने अन्दर से संतुष्ट नहीं होते हैं तब तक हमारा बुद्धि विवेक अर्थात अंतरात्मा की पुकार को हम सुन और समझ नहीं पाते, जिस वजह से हमारा मन का अहम् हमें सही डिसीजन नहीं लेने देता।

शिक्षा – किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले अच्छी प्रकार से समझ बूझ लेना चाहिए कि क्या जो आप कर रहे हैं वो आपके मुकाम का कड़ी है कि नहीं। हमेशा एक बात याद रखें कि दिशा सही होने पर ही मेहनत पूरी रंग लाती है और यदि दिशा गलत हो तो आप कितना भी मेहनत कर लें उससे कोई लाभ नहीं मिल पायेगा। इसलिए दिशा तय करें और आगे बढ़ें, कामयाबी आपको जरुर मिलेगी।

के कलम से – संतोष कुमार (शिक्षक)

Motivational Story in Hindi – कर्म ही धर्म है

“कर्म ही धर्म है”

कर्म ही पूजा है। पूजा के साथ-साथ कर्म सबसे बड़ा धर्म भी है। धर्म और कर्म की बात निकली तो मुझे एक कहानी याद आ गई। किसी नगर में सफलदेव नाम का एक बहुत बड़ा व्यवसायी रहता था। उनके दो पुत्र थे। एक का नाम धर्मदेव तथा दूसरे का नाम कर्मदेव था।

जैसा नाम था वैसा गुण। धर्मदेव किस्मत पर पूर्ण आस्था रखते हुए हमेशा कर्मकाण्ड एवं उपासना में मग्न रहा करता था, जबकि कर्मदेव अपने पिता के जैसा परिश्रमी था। सफलदेव अब बूढ़े हो गए थे। इसलिए वे अपने दोनों बेटों को व्यापार के गुर सिखाकर व्यवसाय में दक्ष बनाना चाहते थे।

एक दिन सफलदेव अपने दोनों पुत्रों को अपने पास बैठाकर व्यापार के बारे में समझाते हुए कहा- “अब मैं बुढ़ापा की अवस्था में आ गया हूँ। व्यापार को अब सही तरह से चलाने में समर्थ नहीं हो रहा हूँ। इसलिए अब तुम दोनों इस व्यवसाय को सम्भालो।” उन्होंने दोनों पुत्रों को आवश्यक सुझाव देते हुए व्यवसाय को सम्भालने की जिम्मेदारी दे दी।

पिता की आज्ञा का अनुपालन करते हुए दोनों पुत्र व्यवसाय सम्भालने लगे। अपितु पुत्र के नाम एवं स्वभाव के अनुसार धर्मदेव अपना ज्यादातर समय कर्मकाण्ड और पूजा-पाठ में ही गुजरता था। परन्तु कर्मदेव अपना सम्पूर्ण समय कारोबार को ठीक ढंग से चलाते हुए उसे और बेहतर ढंग से चलाने के लिए दिन-रात परिश्रम करता रहता था।

कुछ दिनों के बाद सफलदेव अपने दोनों बेटों को अपने पास बुलाकर कारोबार के बारे में जानकारी ली। उन्हें यह जानकर बहुत खुशी हुई कि कारोबार में तरक्की हुई है। उन्होंने कारोबार में तरक्की के लिए दोनों बेटों को शाबासी देते हुए 50-50 स्वर्ण मुद्राएँ उपहार स्वरूप भेंट दिए। उन्होंने दोनों को इसी तरह मेहनत करते हुए कारोबार पर ध्यान देने की सलाह दिए।

धर्मदेव को यह बात हजम नहीं हुई। उसने अपने पिता से कहा- “व्यवसाय में उन्नति मेरे दिन-रात के ईश्वर में आस्था का परिणाम है, इसलिए मुझे सबसे ज्यादा स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त करने का हक़ है।” सफलदेव ने उसे बैठकर शान्ति से समझाते-बुझाते हुए कहा- केवल पूजा-पाठ और कर्मकाण्ड व् ईश्वर में आस्था रखने से कारोबार या अन्य किसी भी काम में सफलता प्राप्त नहीं होती है। जीवन में सफलता और उन्नति करने के लिए परिश्रम अर्थात कर्म को करना ही पड़ता है, साथ ही कर्म ही इंशान के लिए बसे बड़ा धर्म है”।

धर्मदेव को पिता कि यह बात अच्छी नही लगी। वह कोई भी बात सुनने और समझने के लिए तैयार नहीं था। वह अपने पैतृक जमीन-जायदाद एवं कारोबार के बंटवारे पर अड़ गया।

काफी समझाने के बाद भी धर्मदेव नहीं माना। अंततः सफलदेव को दोनों बेटों के बीच बँटवारा करना पड़ा। अपने भाग्य पर भरोसा करने वाला धर्मदेव अपने आदत के अनुसार अपने कारोबार को कर्मचारियों के भरोसे छोड़कर पूजा-पाठ और उपासना में लीन रहने लगा। दूसरे तरफ अपने कर्म पर विश्वास करने वाला कर्मदेव व्यवसाय को बढ़ाने के लिए दिन-रात मेहनत करने लगा। कुछ दिनों के बाद कर्मदेव का व्यवसाय दिन दूनी रात चौगुणी के हिसाब से तरक्की करने लगा, जबकि धर्मदेव के व्यवसाय में बढ़ोतरी तो दूर और सिमटता जा रहा था।

अब धर्मदेव को अपने पिता कि कही बातें याद आने लगी। उसे अपने पिता द्वारा समझायी गई बातें अब समझ में आ रही थी। वह दौड़े-दौड़े अपने पिता के पास गया और अपने किए पर पश्चाताप करते हुए माफी मांगा। पिता सफलदेव, धर्मदेव का गले से लगा लिया।

वे दुवारा धर्मदेव को समझाते हुए कहे- ” सिर्फ कर्मकाण्ड करने से ही सब कुछ नहीं होता, व्यक्ति को जीवन में उन्नति और सफलता प्राप्त करने के लिए पूजा-पाठ के साथ-साथ परिश्रम के साथ कर्म भी करना पड़ता है। वगैर कर्म के धर्म अधूरा है। अर्थात कर्म करने से ही ईश्वर खुश होते हैं, इसी लिए कहा गया है कर्म ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। जो इंशान कर्म पर पूर्ण आस्था रखकर अपने कर्तव्यों पर डटा रहता है। वही इंशान जीवन में सफलता प्राप्त करता है।”

धर्मदेव को पिता द्वारा कही हुई सभी बातें समझ में आ गई थी। वे अपने पिता द्वारा कही हुई बातों का पालन करते हुए कर्म ही धर्म एवं कर्म ही पूजा मानकर व्यवसाय में खूब परिश्रम करने लगा। कुछ ही समयों के बाद धर्मदेव भी अपने परिश्रम के बल पर कारोबार में काफी उन्नति कर ली।

अब दोनों भाई आपस में मिल-जुलकर, सलाह-मशविरा करके मेहनत करते हुए व्यवसाय चलाने लगे। दोनों भाइयों की एकजुटता तथा सूझ-बूझ से कारोबार में काफी तरक्की होने लगी। अब दोनों भाई खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगे।शिक्षा –  हम सभी को भाग्य भरोसे न रहकर कर्म को प्रधानता देनी चाहिए। कर्म ही पूजा है और यही सबसे बड़ा धर्म भी है। कर्म करना सफल जीवन का आधार भी है।

के कलम से – प्रमोद कुमार (शिक्षक)

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प्रेरणादायक कहानियाँ – सफलता आपके विश्वास में है

सफलता आपके विश्वास में है

कभी-कभी जीवन की सबसे बड़ी मुश्किल और चुनौती, हमारे विश्वास पर निर्भर करती है। यह कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है, जिन्होंने अपने विश्वास को कभी हारने नहीं दिया और अपने लक्ष्य को प्राप्त किया।

यह कहानी एक छोटे से गाँव के एक गरीब लड़के की है, जिसका नाम राजा था। राजा गरीब परिवार से था, लेकिन उसमें विशेष प्रकार की उम्मीद और सपने थे। वह बचपन से ही एक विद्यार्थी था और हमेशा अपने माता-पिता और परिवार के लिए सपना देखता था कि वह एक दिन बड़ा रईस आदमी जरुर बनेगा।

एक दिन गाँव में एक बड़ा व्यापारी आया और वह एक लड़के को देखकर उसके गरीबी पर तरस आ गया। व्यापारी को उस लड़के में कुछ अलग ही दिव्य प्रतिभा दिखाई दे रहा था। इस लिए वह लड़के को अपने साथ ले जाने का निश्चय किया। वह लड़का कोई और नहीं बल्कि राजा था। कारोबारी ने उसके पास जाकर कहा, “बेटे, मैं तुम्हें एक बहुत ही शानदार अवसर प्रदान करना चाहता हूँ। क्या आप मेरे साथ कार्य करेंगे और अगर तुम पूर्ण निष्ठा के साथ कार्य करोगे तो मैं तुम्हें एक अच्छी गुर सिखाऊंगा।”

राजा भी खुशी-खुशी तैयार हो गया और व्यापारी के साथ जाने का फैसला किया और वह व्यापारी के साथ काम करने के लिए तैयार हो गया। राजा व्यापारी के साथ खूब मेहनत करने लगा।

सालों बाद, राजा उस व्यापारी से व्यवसाय का गुर सिख कर खुद का व्यवसाय शुरू किया। उसने व्यापार में अपनी मेहनत और विश्वास के साथ काम किया और एक दिन वह एक बड़े और सफल व्यापारी बन गया है। वह अपने परिवार को खुशियों से भर दिया और उन्होंने अपने माता-पिता के सपनों को पूरा किया।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलता है कि यदि हम अपने कार्य पर पूर्ण विश्वास रखते हैं और कठिन परिश्रम से कार्य को अंजाम देते हैं, तो कोई भी परिस्थिति हमारे लक्ष्य को पूरा करने में बाधा नहीं सकती। राजा ने यह साबित कर के दिखाया कि हमारे सपने साकार करने की शक्ति हमारे अंदर ही है, बस हमें उसे पहचानना होता है और उस पर विश्वास रखकर निरंतर कार्य करना होता है।

इसलिए, चाहे आपके सामने कितनी भी बाधाएँ और ख़राब परिस्थिति क्यों ना हों, अपने विश्वास को कभी डिगने नहीं दें, परिश्रम से कार्य करें, और अपने सपनों को पूरा करने के लिए पूरी सिद्दत और विश्वास के साथ चाहत से कार्य करें। आप भी अपने अंदर छुपे हुए प्रतिभा को निखार सकते हैं, बस पूर्विणश्वास और परिश्रम बनाए रखने की जरुरत होती है।

सर्वथा याद रखें – विश्वास और कठिन परिश्रम के साथ किया कार्य से कभी बेकार नहीं जाती है, एक न एक दिन जरुर सफलता हासिल होती है, बस जीतने की चाहत और तमन्ना होनी चाहिए।

के कलम से – Mahesh Kumar Ram (Website Owner)

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Conclusion

दोस्तों उम्मीद करता हूँ कि यह Blog Post Motivational Story in Hindi आपको पसंद आया होगा। अगर पसंद आया है तो इस Motivational Story को अपने दोस्तों में share कर सकते हैं और Story से related रचनाओं को पढ़ने के लिए हमारे इस blog website को हमेशा visit कर सकते हैं। धन्यवाद!

2 thoughts on “Motivational Story in Hindi – प्रेरणादायक कहानियाँ (सफलता का मन्त्र)”

  1. अति सराहनीय प्रयास सर ! 👌👌👌👌👌
    हार्दिक बधाई व धन्यवाद के साथ – साथ हार्दिक शुभकामनाएं! !
    🙏🙏

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